प्रशिक्षित शिक्षकों की बुद्धिस्तर के सन्दर्भ में उनकी व्यावसायिक प्रतिबद्धता पर प्रभाव का अध्ययन
DOI:
https://doi.org/10.36676/girt.2023-v11i2-02Keywords:
यावसायिक प्रतिबद्धताAbstract
शिक्षा का तात्पर्य जीवन में चलने वाली ऐसी प्रक्रिया से है, जो मनुष्य अनुभवों द्वारा प्राप्त करता है। यह प्रक्रिया सीखने के रूप में बचपन से चलती है एवं जीवनपर्यन्त चलती रहती है, जिसके फलस्वरूप मनुष्यों के अनुभवों के भण्डारों में लगातार वृद्धि होती रहती है। यह शिक्षा की प्रक्रिया शिक्षकों के द्वारा सम्पन्न की जाती है और यदि शिक्षक प्रशिक्षित होंगे तो वह अपनी शिक्षण प्रक्रिया सम्बन्धित समस्त जिम्मेदारियों को ओर भी अधिक सचेत होकर पूर्ण करेंगे।
References
भटनागर, आर0पी0, शिक्षा अनुसन्धान, लाॅयल बुक डिपो, काॅलेज रोड, मेरठ।
त्यागी, गुरसरन दास (2002) भारत में शिक्षा का विकास, विनोद पुस्तक भण्डार, आगरा।
अग्रवाल, जे0सी0 (1991) भारतीय शिक्षा पद्धति संरचना और समस्यायें, आर्य बुक डिपो, दिल्ली।
जौहरी एवं पाठक, भारतीय शिक्षा एवं उसकी समस्याएँ, विनोद पुस्तक मन्दिर, आगरा।
वर्मा, जी0एस0 (2001) आधुनिक भारतीय शिक्षा एवं समस्यायें, लाॅयल बुक डिपो, मेरठ।
श्रीनिवास, एम0एन0, आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 1975 द्वितीय संस्करण।
रूहेला, सत्यपाल (2003) उभरते भारतीय समाज में शिक्षा, आर्य बुक डिपो, दिल्ली।
Atkinson, J. and Feather, N. (1966). A theory of achievement motivation, New York: Wiley and sons.
Buch, M.B. (1991). Fourth survey of research in education 1983-88, (vol.1). New Delhi: NECRT.
Flavell, J. H. and Wellman, H. M. (1977). Meta memory. In V. Kail and J.W. Hagen (Eds), Perspectives on the development of memory and cognition. Hillsdale, NJ: Lawrence Erlbaum
Kabir, S. (2016). Basic guidelines for research: An introductory approach for all disciplines. Book Zone Publication.
Downloads
Published
How to Cite
Issue
Section
Categories
License
Copyright (c) 2023 Shweta Kapoor, Dr Santosh Sharma
This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.